शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

(लघुकथा) लोकतंत्र .


दो लोग बातें करते जा रहे थे.


-‘’यार मुझे समझ नहीं आता कि‍ क्‍यों ये चौधरी जब देखो तब डंडा ले कर कि‍सी न कि‍सी दूसरे देश को हड़काने चला ही रहता.’’

- ‘’ क्‍योंकि इसे दुनि‍या के हर देश में लोकतंत्र स्‍थापि‍त कर देना है न, इसीलि‍ए.’’

- ‘’लेकि‍न इसे लोकतंत्र की इतनी चिंता रहती क्‍यों है ?’’

-‘’ क्‍योंकि‍ लोकतंत्र वाले देशों से तेल नि‍चोड़ना आसान होता है.’’

-‘’ मतलब ? ’’

-‘’ मतलब ये कि‍ कि‍सी भी देश का तानाशाह कि‍सी दूसरे की मेहरबानी से सत्‍ता में नहीं होता. जबकि‍ लोकतंत्र के रास्‍ते कुर्सी तक भेजे जाने वालों की कोहनी तो कभी मरोड़ी जा सकती है न. ’’


इसी तरह बात करते-करते वे आगे नि‍कल गए.

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2 टिप्‍पणियां:



  1. बहुत बढ़िया व्यंग्य कथा सरजी !जबकि लोकतंत्र के रास्ते कुर्सी तक भेजे जाने वालों की कोहनी तो कभी भी मरोड़ी जा सकती है .कृपया भेने के स्थान पर भेजे कर लें .शुक्रिया .


    15mVirendra Sharma ‏@Veerubhai1947
    असली उल्लू कौन ? http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2013/02/blog-post_5036.html …
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    Virendra Sharma ‏@Veerubhai1947
    ram ram bhai मुखपृष्ठ शनिवार, 2 फरवरी 2013 Mystery of owls spinning their heads all the way around revealed http://veerubhai1947.blogspot.in/
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